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मोहन जोदड़ो नामक शहर आज भी सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे well planned city के रूप में जाना जाता है | वैसे तो ये नगर एक लम्बे अरसे पहले ध्वस्त हो चुका है और आज के समय में यहाँ सिर्फ उस पुराने सुव्यवस्थित शहर के अवशेष ही बचे रह गए हैं | इतना पुराना शहर होने के बावजूद ये इतना सुव्यवस्थित था कि आज इतिहासकार भी इसे देखकर हैरान रह जाते हैं कि सदियों पहले हमारे पूर्वजों ने ऐसा शहर कैसे बसा लिया | जिसके जैसी नगर व्यवस्था के आस पास हम इतने modern होने के बावजूद आज भी नहीं पहुँच पाए हैं | Mohenjo Daro का इतिहास in Hindi 

 

Friends, अगर आपने पहले इस शहर के बारे में ना सुना हो तो ऐसा हो सकता है कि आपको भी यकीन ना हो कि ऐसा कोई शहर भी इतिहास में रहा होगा. पर ये पूरी तरह सच है. कई बार हमारे पूर्वज हमें हैरान करते आये हैं और सिंधु घाटी सभ्यता के हजारों नगर उन्हीं उदाहरणों में से एक है. और सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों की list में शायद अव्वल स्थान पर होगा मोहन जोदड़ो. आखिर क्या थी इस शहर की खूबियाँ, आइये जानते हैं इस शहर का पूरा इतिहास |

 

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Mohenjo Daro का इतिहास in Hindi

 

मोहन जोदड़ो का इतिहास Mohenjo daro History in Hindi

Pakistan के Larkana जिले में स्थित मोहन जोदड़ो इतिहास में हमारी प्राचीन संस्कृति का गौरव था.

यहाँ मिले अवशेषों को देखकर आज भी ये शहर उतना ही जीवंत लगता है जैसा कि शायद सदियों पहले कभी रहा होगा.

सबसे पहले बात करते है इसके नाम की. दोस्तों मोहन जोदड़ो शब्द का सही pronunciation है “मुअन जो दड़ो“.

ये एक सिंधी भाषा का शब्द होता है जिसका मतलब होता है मुर्दों का टीला.

इस शहर को सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व सुनियोजित और सुव्यवस्थित शहर माना जाता है.

Archeologists का कहना है कि ये शहर 2600 से 1900 ईसा पूर्व के बीच फला फूला.

ये भी कहा जाता है कि इस समय में इस शहर में दुनिया के सबसे अमीर, समृद्ध, शिक्षित लोग और व्यापारी रहा करते थे.

ये नगर कितने बड़े area में फैला हुआ था इस बात का अंदाजा तो आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज भी इस नगर के अवशेष हमें लगभग 125 हेक्टेयर के क्षेत्र में देखने को मिलते हैं.

यहाँ सबसे ज्यादा हैरान करने वाली चीज हैं यहाँ कि ईटें. इन ईटों को देखने के बाद आपको ऐसा लगेगा ही नहीं कि आप हजारों साल पुराने किसी शहर, जो कि अब खंडहर बन चुका है उसके बीच खड़े हैं.

क्योंकि यहाँ कि ईटें बिल्कुल वैसी ही है जैसी हम आज हजारों सालों के बाद इस्तेमाल करते हैं.

दोस्तों वैसे तो हमें इस नगर के अवशेष खोजे हुए भी लगभग एक सदी का समय गुजर गया है लेकिन आज भी ये शहर हमारे सामने तमाम रहस्यों को लेकर खड़ा हुआ है.

मोहन जोदड़ो की खोज

बात 1911 की है जब एक दिन सिंधु नदी के रास्ते यात्रा करते हुआ प्रोफेसर D.R. Bhandarkar की नजर एक खंडहर पर पड़ी.

जब उन्होंने इस जगह का निरीक्षण किया तो उन्हें पता चला कि वहाँ एक बौद्ध स्तूप के अवशेष हैं. उसके बाद यहाँ मिले कुछ सिक्कों के अवशेष को लेकर वो sir John marshal के पास गए.

Marshal उस समय Indian archeological survey department के head हुआ करते थे. उस समय वो हड़प्पा का निरीक्षण कर रहे थे. उन्होंने मोहन जोदड़ो में भी दिलचस्पी दिखाई.

इसके बाद Marshal ने वहाँ का निरीक्षण किया तो पता चला वहाँ और भी प्राचीन अवशेष हो सकते हैं.

इसके बाद 1922 में Sir Rakhldas Banerjee की निगरानी में मोहन जोदड़ो में आधिकारिक तौर पर excavation का काम शुरू हुआ.

और इस excavation कार्य के दौरान इतिहासकारों को बड़ी मात्रा में इमारतें, मिट्टी के बर्तन, metal की बनी हुई मूर्तियाँ, और उस समय प्रयोग किये जाने वाले सिक्के मिलने लगे.

इन अवशेषों के मिलने से ये भी साफ हो गया था कि यहाँ मिलने वाली buildings, ये मूर्तियाँ, सिक्के और बौद्ध स्तूप और सिक्के अलग अलग समय और अलग अलग सभ्यताओं के अवशेष हैं.

Archeologists ये अनुमान लगाते हैं कि बौद्ध स्तूप को दूसरी शताब्दी के आस पास बनाया गया होगा वहीं मोहन जोदड़ो शहर का निर्माण 2600 ईसा पूर्व तक हो गया होगा.

इतना पुराना होने के बावजूद इस शहर का ढाँचा आज भी मजबूत है ये बात तो पुरातत्वविदों को भी हैरान करती आई है.

हालांकि सिर्फ शहर के ढाँचे की मजबूती ही ऐसी चीज नहीं है जो हमें हैरान करती है बल्कि इस शहर की अन्य खूबियाँ भी है जो archeologists के साथ साथ हमारे भी होश उड़ाती है.

The Great Bath

इस शहर में बना जल कुंड जो The Great Bath के नाम से जाना जाता है. जो कि लगभग 40 फुट लंबा, 25 फुट चौड़ा और लगभग 7 फुट गहरा है.

इस कुंड में उतरने के लिए उत्तर और दक्षिण दिशा में सीढियाँ बनाई गयी है. इसके अलावा कुंड के पास आठ स्नानघर भी बने हुए हैं.

दोस्तों यहाँ निरीक्षण से साफ पता चलता है कि इस कुंड को काफी समझदारी से बनवाया गया था. इसमें लगी ईटें आज भी काफी मजबूत हैं.

और तो और बाहर से आने वाले गंदे पानी और impurities को रोकने के लिए इसके तल और किनारे पर चूने और चिरोड़ी के बने गारे का भी इस्तेमाल किया गया था.

इसके अलावा यहाँ पानी की व्यवस्था के लिए कुएँ और गंदा पानी बाहर निकालने के लिए पक्की ईटों से बनी नालियाँ भी बनाई गयी हैं.

और खास बात ये है कि इन नालियों को पक्की ईटों से ही ढका भी गया है. दोस्तों इस शहर की पहचान उसकी मजबूत ईटें और ढकी हुई नालियाँ ही हैं क्योंकि ऐसा कुछ किसी प्राचीन शहर में पहले कभी नहीं देखा गया है.

इसके अलावा इतिहासकार ये भी मानते हैं कि संपूर्ण इतिहास में सिंधु घाटी सभ्यता ही वो पहली सभ्यता है जहाँ के लोगों ने कुएँ खोद कर पानी निकालना सीख लिया था.

इसके अलावा यहाँ कि बेहतरीन जल प्रणाली, कुएँ एवं नालियों को देखते हुए ये भी कहा जाता है कि यहाँ के लोग असल मायने में जल अभियंता थे.

खुदाई के बाद मिले अवशेषों से ये भी पता चलता है कि यहाँ के लोग खेती करना और पशु पालना भी सीख चुके थे.

यहाँ पर गेहूं, चना, जौ, और सरसों की खेती के प्रमाण मिलते हैं. इसके साथ ही दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक के यहीं पर होने के साक्ष्य मिले हैं.

मोहन जोदड़ो नगर की व्यवस्था

इस नगर की सड़कें grid योजना के तहत बनाई गयी थी. जो कि एक दूसरे को 90 degree के angle पर काटती हैं.

ये पूरा का पूरा शहर दो भागों में विभाजित हैं. इनमें से एक भाग में उस समय नगर के रईस लोग रहा करते होंगे. इस भाग को रईसों की बस्ती या फिर दुर्ग कहा जाता है.

वहीं दूसरा हिस्सा जहाँ मध्यम वर्ग के लोग रहा करते थे उसे निचला नगर कहा जाता है.

दुर्ग वाले हिस्से पर बड़े बड़े मकान चौड़ी सड़कें और कई सारे कुएँ हैं. वहीं निचले भाग में छोटे आकार के मकान,  और छोटी सड़कें हैं.

निचले हिस्से में सड़क के दोनों तरफ घर बने हुए हैं. इन घरों का पिछला हिस्सा सड़क की तरफ है और इनके दरवाजे गलियों में खुलते हैं.

इसके अलावा यहाँ पर एक museum जैसी जगह भी है जहाँ पर बर्तन, मोहरे, वाद्ययंत्र, आभूषण, दिये, औजार, खिलौने आदि रखे हुए हैं.

Archeologists ये अनुमान लगाते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता में अनुशासन हथियारों के दम पर नहीं बल्कि बुद्धि के बल पर स्थापित किया गया था.

ऐसा इसलिए कि यहाँ पर औजार तो कई सारे मिले हैं लेकिन हथियार एक भी नहीं. और ऐसा सिर्फ तभी संभव है जब यहाँ के लोग हथियारों का इस्तेमाल करते ही ना हो.

यहाँ के लोग कला और सृजन के महत्व को भी अच्छी तरह समझते थे. वो सिर्फ वस्तु कला में निपुण नहीं थे बल्कि मिट्टी के बर्तनों पर बनी इंसानों और जानवरों की आकृतियाँ, धातु की मूर्तियाँ, इसके अलावा चित्रों पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ ये दर्शाती है कि यहाँ के लोग कला के महत्व को भी समझते थे और ये भी बताता है कि ये लोग  सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि कला के मामले में भी काफी आगे थे.

सिंधु घाटी सभ्यता की खासियत उसका सौंदर्य बोध है जो ये इशारा करता था कि ये किसी भी राजा या फिर धर्म के द्वारा पोषित सभ्यता नहीं थी.

वो लोकतंत्र द्वारा पोषित था. यही वजह है कि इस सभ्यता को अपने समय की सबसे उन्नत और पोषित सभ्यता माना जाता है.

हालांकि अभी हम सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में सबकुछ नहीं जानते. ये सभ्यता इतनी बड़ी है कि इसका उत्खनन करने में ही कितना समय लगेगा इस बात का अंदाजा अब इसी बात से लगा सकते हैं कि लगभग एक साल के excavation कार्य के बाद हम यहाँ का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा ही खोद पाए हैं.

बाकी की सभ्यता के साथ साथ उसके गहरे राज आज भी जमीन के अंदर दफन हैं. जो कब बाहर आयेंगे पता नहीं.

क्योंकि सिंधु घाटी सभ्यता का ज्यादातर हिस्सा Pakistan में है और फिलहाल वहाँ की सरकार के उत्खनन का काम बंद करवा रखा है. जो कब शुरू होगा पता नहीं.

लेकिन अभी तक सिंधु घाटी सभ्यता का जो हिस्सा हम discover कर पाएं हैं वो ही हमारे होश उड़ाने के लिए काफी है.

यहाँ कुंड के किनारे स्नान घरों का बना होना ही अपने आप में unique है क्योंकि ऐसा कुछ तो हम आज तक इतने modern और विकसित होने के बावजूद नहीं कर पाए हैं.

इतना ही नहीं. यहाँ जो स्नान घर बने हुए थे उनके दरवाजे एक दूसरे से विपरीत दिशा में खुलते थे.

इसके अलावा यहाँ का drainage system भी बेमिसाल था. यहाँ गंदे पानी के निकास की पुरी व्यवस्था थी.

नलियों का ढका होना भी ये दर्शाता है यहाँ के लोग जानते थे दूषित जल से बीमारियाँ पनप सकती हैं.

ये शहर पूरी planning के साथ बसाया गया था और सच कहा जाए तो आज की तारीख में भी शायद ही कोई शहर इतने सुनियोजित ढंग से बसाया गया हो.

और यही बात पुरातत्वविदों को हैरान करती है. दोस्तों इसके अलावा एक आश्चर्यजनक बात ये भी है, जैसा कि यहाँ घरों में भी कुएँ बने हुए थे.

और उन कुओं को भी बाहर की ओर बनाया गया था. ताकि यहाँ से गुजरने वाला राहगीर भी प्यासा होने पर उससे पानी पी सके.

लेकिन ये विकसित सभ्यता कैसे खत्म हुई इसके बारे में हमें कोई ठोस जानकारी नहीं मिली है.

तो दोस्तों ये थी मोहन जोदड़ो के इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी. इस सुनियोजित सभ्यता के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?  आपको क्या लगता है इतनी विकसित सभ्यता कैसे खत्म हुई होगी? आपको मोहन जोदड़ो शहर की को बात ने सबसे ज्यादा हैरान किया?

 

 

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