पंजाब-हरियाणा किसानों के आंदोलन की तपिश ने देश भर के किसानों को एकजुट कर दिया है. किसान अपनी मांग से पीछे हटने को कतई राजी नहीं हैं. किसान आंदोलन के बीच हरियाणा की खट्टर सरकार के कृषि मंत्री ने हरियाणा के किसानों के लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) के पानी की मांग उठाकर एक बड़ा दांव चला है. हरियाणा और पंजाब के बीच यह ऐसा विवाद है, जो अगर सियासी तूल पकड़ता है तो दोनों राज्य के किसान बंट सकते हैं?
- पंजाब और हरियाणा में 44 साल से SYL विवाद
- पंजाब SYL का पानी हरियाणा को देने को राजी नहीं
- सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी विवाद का हल नहीं
कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ 13 दिनों से दिल्ली के बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं. पंजाब-हरियाणा किसानों के आंदोलन की तपिश ने देश भर के किसानों को एकजुट कर दिया है. किसान अपनी मांग से पीछे हटने को कतई राजी नहीं है. किसान आंदोलन के बीच हरियाणा की खट्टर सरकार के कृषि मंत्री ने हरियाणा के किसानों के लिए सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) के पानी की मांग उठाकर एक बड़ा दांव चला है. हरियाणा और पंजाब के बीच यह ऐसा विवाद है, जो अगर सियासी तूल पकड़ता है तो दोनों राज्य के किसान बंट सकते हैं?
हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल ने सोमवार को मांग उठाई कि सभी पार्टियों के नेता और खाप पंचायत सतलुज-यमुना लिंक नहर का समाधान निकालें. दक्षिण हरियाणा के किसानों के लिए सिंचाई के लिए पानी चाहिए. हमारी बस यही मांग है कि हरियाणा के लिए एसवाईएल नहर का निर्माण होना चाहिए. हरियाणा के लिए सबसे बड़ी समस्या पानी है, 44 सालों से अटका हुआ मुद्दा सुप्रीम कोर्ट से जीत चुके हैं, किसानों से कहना चाहते हैं कि वह अपने मांग पत्र में इस मांग को भी लिखवा दें.
पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद पिछले चार दशक के एक सियासी मुद्दा बना हुआ है. पंजाब हमेशा से एसवाईएल के पानी को हरियाणा को देने का विरोध करता रहा है और अभी भी अपने पुराने स्टैंड पर कायम है. सुप्रीम कोर्ट के हस्ताक्षेप के बाद केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने दोनों राज्यों के बीच विवाद सुलझाने की कवायद शुरू की थी. इस पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्र सरकार को चेताते हुए कहा था कि यदि सतलुज-यमुना नहर बनी तो पंजाब जल उठेगा. ऐसे में सरकार अभी तक कोई हल नहीं निकाल सकी और हरियाणा और पंजाब के बीच यह विवाद जस का तस बना हुआ है.
SYL पर 1966 से विवाद है
बता दें कि 1966 में पंजाब से जब अलग हरियाणा राज्य बना तभी से यह विवाद है. 10 साल के लंबे विवाद के बाद 1976 में दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे को अंतिम रूप दिया गया और इसी के साथ सतलुज यमुना नहर बनाने की बात कही गई. 24 मार्च 1976 को केंद्र सरकार ने पंजाब के 7.2 एमएएफ यानी मिलियन एकड़ फीट पानी में से 3.5 एमएएफ हिस्सा हरियाणा को देने की अधिसूचना जारी की थी, जिसके बाद पंजाब के किसान फिर सड़क पर उतर आए.
इसके बाद साल 1981 में समझौता हुआ और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 8 अप्रैल 1982 को पंजाब के पटियाला जिले के कपूरई गांव में एसवाईएल का उद्घाटन किया था. हालांकि, इसके बाद भी विवाद नहीं थमा बल्कि या यूं कहें कि विवाद और भी बढ़ता गया. 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एसएडी प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल से मुलाकात की थी और फिर एक नए न्यायाधिकरण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.
हरचंद सिंह लोंगोवाल को समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने से भी कम समय में आतंकवादियों ने मार दिया था. 1990 में नहर से जुड़े रहे एक मुख्य इंजीनियर एमएल सेखरी और एक अधीक्षण अभियंता अवतार सिंह औलख को आतंकवादियों ने मार दिया था. नहर के पानी के चलते हरियाणा सरकार ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी. इसके बाद 15 जनवरी 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक साल में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 4 जून 2004 पंजाब सरकार ने अपनी याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.
पंजाब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजी नहीं
पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर तमाम जल समझौते रद कर दिए. इस तरह से पंजाब ने हरियाणा को पानी देने वाले समझौते को मानने से ही इनकार कर दिया था. पंजाब नहर के लिए अधिग्रहित जमीन किसानों को वापस करने की बात कही. इसके लिए एक विधेयक भी विधानसभा में पारित किया गया था, जिससे स्थिति और अधिक जटिल हो गई है और नहर को मिट्टी से भर दिया गया है. ऐसे में संघीय ढांचे की अवधारण पर चोट पहुंचने की आशंका को देखते हुए राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा.
12 साल तक यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और 2015 में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में बनी बीजेपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया. फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की पीठ गठित की, जिसने सुनवाई कर केंद्र सरकार से दोनों राज्यों के बीच के विवाद को जल्द से जल्द सुलझाने की बात कही.
केंद्र सरकार की समझौता कराने की कोशिश
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अब जब केंद्र के जल शक्ति मंत्री और पंजाब व हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की बैठक हुई तो यह विवाद फिर सामने आ गया. अमरिंदर सिंह ने कहा था कि पंजाब के विभाजन के बाद पानी को छोड़कर हमारी सभी संपत्तियां 60 और 40 के आधार पर बांटी गईं, क्योंकि उस पानी में रावी, ब्यास और सतलुज का पानी शामिल था, लेकिन यमुना का नहीं. मैंने सुझाव दिया है कि उन्हें यमुना का पानी भी शामिल करना चाहिए और फिर इसे 60 और 40 के आधार पर विभाजित करना चाहिए. हालांकि, पंजाब के इस फॉर्मूले पर हरियाणा राजी नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार हरियाणा के पक्ष में फैसले दिए जाते रहे हैं. 2017 में तो एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा भी पंजाब सरकार के खिलाफ दर्ज हुआ था, जब हरियाणा के पक्ष में आए फैसले के अगले ही दिन पंजाब सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उलट फैसला लेते हुए आदेश जारी किए थे.
पंजाब ने यह भी कहा कि हम अदालती आदेश का पालन करना चाहते हैं, लेकिन अपने किसानों को नजरअंदाज कर ऐसा नहीं कर सकते. हमारे किसान भूख से मरें और हम सतलुज, यमुना और ब्यास नदी का पानी किसी और क्यों दें. पानी हमारी जरूरत हैं. पंजाब के इसी रुख के कारण वर्षों से इस मामले का समाधान नहीं निकल पा रहा. ऐसे अब फिर एक बार हरियाणा के कृषि मंत्री ने यह मामला उठाकर दोबारा से जिंदा कर दिया है, जो अगर तूल पकड़ता है तो दोनों राज्य के किसान आपस में बंट सकते हैं.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा विधानसभा द्वारा सतलज-यमुना लिंक (Sutlej Yamuna Link- SYL) नहर को पूरा करने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया है।
- इसके पूरा हो जाने के बाद यह नहर हरियाणा और पंजाब के बीच रावी और ब्यास नदियों के पानी को साझा करने में सक्षम होगी।
- प्रस्तावित सतलज-यमुना लिंक नहर 214 किलोमीटर लंबी नहर है जो सतलज और यमुना नदियों को जोड़ती है।
- जल संसाधन राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं, जबकि संसद को संघ सूची के तहत अंतर्राज्यीय नदियों के संबंध में कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1960: विवाद की उत्पत्ति भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सिंधु जल संधि में देखी जा सकती है, जिसमें रावी, ब्यास और सतलज के पूर्व में ‘मुक्त और अप्रतिबंधित उपयोग’ (Free And Unrestricted Use) की अनुमति दी गई थी।
- वर्ष 1966: पुराने (अविभाजित) पंजाब से निर्मित हरियाणा को नदी के पानी का हिस्सा देने की समस्या उभरकर सामने आई।
- सतलज और उसकी सहायक ब्यास नदी के जल का हिस्सा हरियाणा को देने के लिये सतलज को यमुना से जोड़ने वाली एक नहर (एसवाईएल नहर) की योजना बनाई गई थी।
- पंजाब ने यह कहते हुए हरियाणा के साथ पानी साझा करने से इनकार कर दिया कि यह रिपेरियन सिद्धांत (Riparian Principle) के खिलाफ है जिसके अनुसार, नदी के पानी पर केवल उस राज्य और देश या राज्यों और देशों का अधिकार होता है जहांँ से नदी बहती है।
- वर्ष 1981: दोनों राज्य पानी के पुन: आवंटन हेतु परस्पर सहमत हुए।
- वर्ष 1982: पंजाब के कपूरी गांँव में 214 किलोमीटर लंबी सतलज-यमुना लिंक नहर (SYL) का निर्माण शुरू किया गया।
- राज्य में आतंकवाद का माहौल बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बनाने के विरोध में आंदोलन, विरोध प्रदर्शन हुए तथा हत्याएंँ की गईं।
- वर्ष 1885:
- प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन अकाली दल के प्रमुख संत ने पानी का आकलन करने हेतु एक नए न्यायाधिकरण के लिये सहमति व्यक्त की।
- पानी की उपलब्धता और बंँटवारे के पुनर्मूल्यांकन हेतु सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी बालकृष्ण एराडी (V Balakrishna Eradi) की अध्यक्षता में ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई थी।
- वर्ष 1987 में ट्रिब्यूनल ने पंजाब और हरियाणा को आवंटित पानी में क्रमशः 5 एमएएफ और 3.83 एमएएफ तक की वृद्धि की सिफारिश की।
- वर्ष 1996: हरियाणा ने SYL का काम पूरा करने के लिये पंजाब को निर्देश देने हेतु सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
- वर्ष 2002 और वर्ष 2004: सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब को अपने क्षेत्र में SYL के काम को पूरा करने का निर्देश दिया।
- वर्ष 2004: पंजाब विधानसभा ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स अधिनियम पारित किया, इसके माध्यम से जल-साझाकरण समझौतों को समाप्त कर दिया गया और इस तरह पंजाब में SYL का निर्माण अधर में रह गया।
- वर्ष 2016: सर्वोच्च न्यायालय ने 2004 के अधिनियम की वैधता पर निर्णय लेने के लिये राष्ट्रपति के संदर्भ (अनुच्छेद 143) पर सुनवाई शुरू की और यह माना कि पंजाब नदियों के जल को साझा करने के अपने वादे से पीछे हट गया है। इस प्रकार अधिनियम को संवैधानिक रूप से अमान्य घोषित कर दिया गया था।
- वर्ष 2020:
- सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को SYL नहर के मुद्दे पर उच्चतम राजनीतिक स्तर पर केंद्र सरकार की मध्यस्थता के माध्यम से बातचीत करने और मामले को निपटाने का निर्देश दिया।
- पंजाब ने जल की उपलब्धता के नए समयबद्ध आकलन हेतु एक न्यायाधिकरण की मांग की है।
- पंजाब का मानना है कि आज तक राज्य में नदी जल का कोई अधिनिर्णय या वैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं हुआ है।
- रावी-ब्यास जल की उपलब्धता भी 1981 के अनुमानित 17.17 MAF (मिलियन एकड़ फुट) से घटकर 2013 में 13.38 MAF हो गई है। एक नया न्यायाधिकरण इन सभी की जाँच सुनिश्चित करेगा।
पंजाब और हरियाणा राज्यों के तर्क:
- पंजाब:
- वर्ष 2029 के बाद पंजाब के कई क्षेत्रों में जल समाप्त हो सकता है और सिंचाई के लिये राज्य पहले ही अपने भूजल का अत्यधिक दोहन कर चुका है क्योंकि गेहूंँ और धान की खेती करके यह केंद्र सरकार को हर साल लगभग 70,000 करोड़ रुपए मूल्य का अन्न भंडार उपलब्ध कराता है।
- राज्य के लगभग 79% क्षेत्र में पानी का अत्यधिक दोहन है और ऐसे में सरकार का कहना है कि किसी अन्य राज्य के साथ पानी साझा करना असंभव है।
- वर्ष 2029 के बाद पंजाब के कई क्षेत्रों में जल समाप्त हो सकता है और सिंचाई के लिये राज्य पहले ही अपने भूजल का अत्यधिक दोहन कर चुका है क्योंकि गेहूंँ और धान की खेती करके यह केंद्र सरकार को हर साल लगभग 70,000 करोड़ रुपए मूल्य का अन्न भंडार उपलब्ध कराता है।
- हरियाणा:
- हरियाणा का तर्क है कि राज्य में सिंचाई के लिये जल उपलब्ध कराना कठिन है और हरियाणा के दक्षिणी हिस्सों में पीने के पानी की समस्या है जहांँ भूजल 1,700 फीट तक कम हो गया है।
- हरियाणा केंद्रीय खाद्य पूल (Central Food Pool) में अपने योगदान का हवाला देता रहा है और तर्क दे रहा है कि एक न्यायाधिकरण द्वारा किये गए मूल्यांकन के अनुसार उसे पानी में उसके उचित हिस्से से वंचित किया जा रहा है।
सतलज और यमुना नदी की मुख्य विशेषताएँ:
- सतलज:
- सतलज नदी का प्राचीन नाम जराद्रोस (प्राचीन यूनानी) शुतुद्री या शतद्रु (संस्कृत) है।
- यह सिंधु नदी की पाँच सहायक नदियों में सबसे लंबी है, जो पंजाब (जिसका अर्थ है “पाँच नदियाँ”) को अपना नाम देती है।
- झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज, सिंधु की मुख्य सहायक नदियाँ हैं।
- इसका उद्गम दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत की ‘लंगा झील’ में हिमालय के उत्तरी ढलान पर होता है।
- सर्वप्रथम यह हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करती है और फिर हिमालय की घाटियों के माध्यम से उत्तर-पश्चिम की ओर तथा बाद में पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम की ओर बहते हुए, यह नंगल के पास पंजाब के मैदान के माध्यम से प्रवाहित होती है।
- एक विस्तृत चैनल के माध्यम से दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ते हुए यह ब्यास नदी में मिलती है और पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले भारत-पाकिस्तान सीमा पर 65 मील तक प्रवाहित होती है, इस प्रकार अंततः बहावलपुर के पश्चिम में चिनाब नदी में शामिल होने के साथ 220 मील की दूरी तय करती है।
- सतलज नदी पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले फिरोज़पुर ज़िले के हरिके में ब्यास नदी में मिलती है।
- संयुक्त नदियाँ तब पंजनाद बनाती हैं, जो पाँच नदियों और सिंधु के बीच की कड़ी है।
- लुहरी चरण-I जल विद्युत परियोजना हिमाचल प्रदेश के शिमला और कुल्लू ज़िलों में सतलज नदी पर स्थित है।
- यमुना:
- उद्गम: यह गंगा नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में समुद्र तल से लगभग 6387 मीटर की ऊंँचाई पर निम्न हिमालय की मसूरी रेंज से बंदरपूंँछ चोटियों (Bandarpoonch Peaks) के पास यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है।
- बेसिन: यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली होकर बहने के बाद प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में संगम (जहांँ कुंभ मेला आयोजित किया जाता है) में गंगा नदी से मिलती है।
- लंबाई: 1376 किमी.
- महत्त्वपूर्ण बाँध: लखवाड़-व्यासी बाँध (उत्तराखंड), ताज़ेवाला बैराज बाँध (हरियाणा) आदि।
- महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ: चंबल, सिंध, बेतवा और केन।
आगे की राह
- न्यायाधिकरण के निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार के साथ एक स्थायी न्यायाधिकरण स्थापित करके जल विवादों को हल या संतुलित किया जा सकता है।
- किसी भी संवैधानिक सरकार का तात्कालिक लक्ष्य अनुच्छेद-262 में संशोधन (अंतर-राज्यीय नदियों या नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों का न्यायनिर्णयन) और अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम में संशोधन एवं समान रूप से इसका कार्यान्वयन होना चाहिये।
The heat of the Punjab-Haryana farmers’ movement has united the farmers across the country. The farmers are not at all ready to back down from their demand. Amidst the farmers’ agitation, the Agriculture Minister of the Khattar government of Haryana has made a big bet by raising the demand of Sutlej-Yamuna Link Canal (SYL) water for the farmers of Haryana. This is such a dispute between Haryana and Punjab, that if it becomes political, then the farmers of both the states can be divided?
- SYL dispute in Punjab and Haryana for 44 years
- Punjab is not ready to give SYL water to Haryana
- The dispute is not resolved even after the intervention of the Supreme Court
The farmers of Punjab and Haryana have been unitedly agitating against the Modi government on the border of Delhi for 13 days against the agricultural laws. The heat of the Punjab-Haryana farmers’ movement has united the farmers across the country. The farmer is not at all ready to back down from his demand. Amidst the farmers’ agitation, the Agriculture Minister of the Khattar government of Haryana has made a big bet by raising the demand of Sutlej-Yamuna Link Canal (SYL) water for the farmers of Haryana. This is such a dispute between Haryana and Punjab, that if it becomes political, then the farmers of both the states can be divided?
Haryana Agriculture Minister JP Dalal on Monday raised the demand that leaders of all parties and Khap Panchayats should find a solution for the Sutlej-Yamuna link canal. The farmers of South Haryana need water for irrigation. Our only demand is that SYL canal should be constructed for Haryana. The biggest problem for Haryana is water, having won the issue stuck for 44 years from the Supreme Court, wants to ask the farmers to get this demand written in their demand letter.
The Sutlej-Yamuna Link canal dispute between Punjab and Haryana has remained a political issue for the last four decades. Punjab has always been opposed to giving SYL water to Haryana and is still standing by its old stand. After the intervention of the Supreme Court, the Union Ministry of Water Resources started the exercise of resolving the dispute between the two states. On this, Punjab Chief Minister Captain Amarinder Singh had warned the central government that if the Sutlej-Yamuna canal was built, Punjab would burn. In such a situation, the government could not find any solution so far and this dispute between Haryana and Punjab remains the same.
SYL has been in dispute since 1966
Let us tell you that this dispute has been going on since 1966 when Haryana was carved out of Punjab. After a long dispute of 10 years, the water sharing between the two states was finalized in 1976 and with this the matter of building the Sutlej Yamuna Canal was said. On 24 March 1976, the Central Government had issued a notification to Haryana to give 3.5 MAF of Punjab’s 7.2 MAF i.e. million acre feet of water, after which the farmers of Punjab again took to the road.
After this agreement was reached in the year 1981 and former PM Indira Gandhi inaugurated SYL on 8 April 1982 in Kapurai village of Patiala district of Punjab. However, even after this the controversy did not stop, rather or rather, the controversy continued to grow. In 1985, former Prime Minister Rajiv Gandhi met SAD chief Harchand Singh Longowal and then an agreement was signed for a new tribunal.
Harchand Singh Longowal was killed by terrorists less than a month after the signing of the agreement. In 1990, ML Sekhri, a chief engineer associated with the canal, and Avtar Singh Aulakh, a superintendent engineer, were killed by terrorists. Due to canal water, the Haryana government knocked in the Supreme Court in 1996. After this, on 15 January 2002, the Supreme Court directed Punjab to form SYL in one year. On 4 June 2004, the Punjab government filed its petition against the decision of the Supreme Court, which was rejected by the court.
Punjab did not agree with the decision of the Supreme Court
Punjab canceled all water agreements by enacting the Punjab Termination of Agreements Act-2004. In this way, Punjab had refused to accept the agreement giving water to Haryana. Said to return the land acquired for the Punjab Canal to the farmers. A bill for this was also passed in the assembly, which has made the situation more complicated and the canal has been filled with soil. In such a situation, in view of the possibility of hurting the concept of federal structure, the President sought a reference from the Supreme Court.
The matter lay in cold storage for 12 years and in 2015, the BJP government led by Manohar Lal Khattar requested the Supreme Court to set up a Constitution Bench to hear the President’s reference. In February 2016, the Supreme Court constituted a five-judge bench, which after hearing the matter asked the central government to resolve the dispute between the two states at the earliest.
Central government’s attempt to compromise
After the intervention of the Supreme Court, now when the Jal Shakti Minister of the Center and the Chief Ministers of Punjab and Haryana held a meeting, this dispute came to the fore again. Amarinder Singh had said that after the partition of Punjab, except water, all our assets were divided on the basis of 60 and 40, because that water included water from Ravi, Beas and Sutlej, but not of Yamuna. I have suggested that they should also include water from Yamuna and then divide it on the basis of 60 and 40. However, Haryana is not agreeable to this formula of Punjab.
The Supreme Court has repeatedly given decisions in favor of Haryana. In 2017, a case of contempt of Supreme Court on SYL was also registered against the Punjab government, when the very next day after the decision in favor of Haryana, the Punjab government called a cabinet meeting and issued orders contrary to the decision of the Supreme Court. Were.
Punjab also said that we want to follow the court order, but cannot do so by ignoring our farmers. Our farmers die of hunger and why should we give water from Sutlej, Yamuna and Beas rivers to anyone else. Water is our need. Due to this stand of Punjab, this matter has not been resolved for years. In such a situation, once again the Agriculture Minister of Haryana has raised this matter and revived it again, which if it catches up, then the farmers of both the states can be divided among themselves.
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