Court Marriage रजिस्ट्रेशन कैसे करें, आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आता है? ये होती कैसे है, क्या प्रक्रिया है इसकी? क्योंकि अभी तक आपने ज्यादातर बैंड-बाजे वाली शादियां ही देखी होंगी। लेकिन अब शादियों में लाखों खर्च करने के बजाय, लोग कोर्ट मैरिज कर अपने पैसे बचा रहे हैं। अब शो-शा वाली शादियों के बजाय शांति से पैसों और समय की बर्बादी किए बगैर, लोग कोर्ट मैरिज की तरफ रूख कर रहे हैं। बॉलीवुड के कई सेलेब्स ने भी बिग-फैट वेडिंग के बजाय कोर्ट मैरिज की,जैसे जॉन अब्राहम-प्रिया रुंचाल, मिनिषा लांबा-रियान थाम और सैफ अली खान-करीना कपूर आदि।इसी के साथ अब हर नए शादीशुदा जोड़े को अपनी शादी का प्रमाण पत्र यानि मैरिज सर्टिफिकेट बनवाना होता है। ये मैरिज सर्टिफिकेट कोर्ट में बनता है, जो कपल्स के सभी जॉइंट काम, जैसे प्रॉपर्टी, इनवेस्टमेंट, पासपोर्ट, बच्चों की कस्टडी आदि के लिए जरूरी होता है। आज आपको कोर्ट मैरिज के बारे में बता हैं सबकुछ…
क्या है कोर्ट मैरिज?
भारत में कोर्ट मैरिज आमतौर पर होने वाली शादियों से बहुत अलग होती है। कोर्ट मैरिज बिना किसी परंपरागत समारोह के कोर्ट में मैरिज ऑफिसर के सामने होती है। सभी कोर्ट मैरिज विशेष विवाह अधिनियम के तहत संपन्न की जाती हैं। कोर्ट मैरिज किसी भी धर्म संप्रदाय अथवा जाति के बालिग युवक-युवती के बीच हो सकती है। किसी विदेशी व भारतीय की भी कोर्ट मैरिज हो सकती है। कोर्ट मैरिज में किसी तरह का कोई भारतीय तरीका नहीं अपनाया जाता है। बस इसके लिए दोनों पक्षों को सीधे ही मैरिज रजिस्ट्रार के समक्ष आवेदन करना होता है।
कोर्ट मैरिज के बारे में जानने से पहले इस प्रक्रिया में पूछे जाने वाले कुछ आम सवालों पर गौर करते हैं।
1- क्या कोर्ट मैरिज का पंजीकरण यानि रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन किया जा सकता है?
जवाब है, नहीं। रजिस्ट्रेशन के लिए मैरिज ऑफिसर के सामने खुद उपस्थित होना अनिवार्य है, शादी का रजिस्ट्रेशन तभी संभव है।
2 – क्या कोर्ट मैरिज के लिए माता-पिता की मंजूरी जरूरी है?
इस सवाल का जवाब भी ना है। बशर्ते आप बालिग हों और कोर्ट मैरिज के लिए निर्धारित नियमों का पालन किया गया हो।
कोर्ट मैरिज के लिए जरूरी शर्तें, जिनका पालन किया जाना जरूरी है
पूर्व में कोई विवाह ना हुआ हो
इस नियम के तहत यह जरूरी है कि इस कानूनी प्रक्रिया में शामिल होने से पहले दोनों पक्ष यह सुनिश्चित करें कि उनका कोई भी पूर्व विवाह यदि हुआ है तो वह वैध ना हो। दूसरे, दोनों पक्षों की पहली शादी से जुड़े पति या पत्नी जीवित ना हों।
लीगली रेडी
आपसी रिश्तेदारी में शादी नहीं हो सकती है। यानि बुआ, बहन आदि। यह नियम केवल हिन्दू कम्युनिटी पर लागू है। मैरिज के वक्त दोनों ही पक्ष यानि वर व वधू अपनी वैध सहमति यानि ‘लीगली रेडी’ देने के लिए सक्षम होने चाहिए। यानि प्रक्रिया में स्वेच्छा से शामिल होने चाहिए।
उम्र
- कानूनी विवाह या कोर्ट मैरिज के लिए पुरुष की आयु 21 वर्ष से ज्यादा तथा महिला की उम्र 18 वर्ष से ज्यादा होना जरूरी है। दोनों पक्षों का संतान की उत्पत्ति के लिए शारीरिक रूप से योग्य होना जरूरी है।
- इसके अलावा दोनों ही मानसिक रूप से स्टेबल यानि स्वस्थ होने चाहिए।
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया का पहला चरण
- प्रायोजित विवाह की सूचना आवेदन – कोर्ट में विवाह करने के लिए सर्वप्रथम जिले के विवाह अधिकारी को सूचित किया जाना चाहिए।
- सूचना किसके द्वारा दी जानी चाहिए? – विवाह में शामिल होने वाले पक्षों द्वारा लिखित सूचना दी जानी चाहिए।
सूचना किसे दी जानी चाहिए और इसका तरीका?
- कोर्ट मैरिज की सूचना उस जिले के विवाह अधिकारी को दी जानी चाहिए। इसके अलावा एक जरूरी नियम के तहत विवाह के इच्छुक दोनों पक्षों में से एक ने सूचना की तारीख से एक महीने पहले तक शहर में निवास किया हो। मसलन यदि महिला और पुरुष कानपुर के हैं और दिल्ली में विवाह करना चाहते हैं तो उनमें से किसी एक को सूचना की तारीख से 30 दिन पहले से दिल्ली जाकर रहना अनिवार्य होगा।
- सूचना के स्वरूप के तहत आयु और निवास स्थान यानि रेजिडेंस के प्रामाणिक दस्तावेज़ भी साथ में देने होंगे।
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया का दूसरा चरण
सूचना कौन और कहां प्रकाशित होती है?
जिले के विवाह अधिकारी, जिनके सामने सूचना जारी की गई थी, वो ही सूचना को प्रकाशित करते हैं। सूचना की एक प्रति कार्यालय में एक विशिष्ट स्थान पर तथा एक प्रति उस जिला कार्यालय में जहां विवाह पक्ष स्थाई रूप से निवासी हैं, प्रकाशित की जाती है।
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया का तीसरा चरण
विवाह में कौन कर सकता है आपत्ति?
कोई भी। मतलब कोई भी व्यक्ति विवाह में आपत्ति दर्ज करा सकता है, जिसका लड़का या लड़की से दूर या पास का रिश्ता हो। यदि दी गई आपत्तियों का कोई आधार होता है तो ही उन पर जांच होती है।
कहां की जाती है आपत्ति?
संबंधित जिले के विवाह अधिकारी के सामने।
आपत्ति होने पर उसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
आपत्ति किए जाने के 30 दिन के अंदर-अंदर विवाह अधिकारी को जांच-पड़ताल करना जरूरी है। यदि की गई आपत्तियों को सही पाया जाता है, तो विवाह संपन्न नहीं हो सकता।
स्वीकार की गई आपत्तियों पर क्या उपाय है?
स्वीकार की गई आपत्तियों पर कोई भी पक्ष अपील दर्ज कर सकता है।
अपील हम किसके पास और कब दर्ज कर सकते हैं?
अपील आपके स्थानीय जिला न्यायालय में विवाह अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में दर्ज की जा सकती है। और यह आपत्ति के स्वीकार होने के 30 दिन के भीतर ही दर्ज की जा सकती है।
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया का चौथा चरण
अब बात आती है कि कौन करता है घोषणा पर हस्ताक्षर?
विवाह अधिकारी की उपस्थिति में दोनों पक्ष और तीन गवाह, घोषणा पर हस्ताक्षर करते हैं। विवाह अधिकारी के हस्ताक्षर भी होते हैं।
इस घोषणा का लेख और प्रारूप क्या है?
घोषणा का प्रारूप अधिनियम की अनुसूची 111 में प्रदान किया गया है।
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया का पाचवां चरण
- विवाह का स्थान – विवाह अधिकारी का कार्यालय या उचित दूरी के अंदर का कोई भी स्थान विवाह का स्थान हो सकता है।
- विवाह का फाॅर्म – विवाह अधिकारी की उपस्थिति में वर और वधू का फाॅर्म स्वीकार किया जाता है।
कोर्ट मैरिज प्रक्रिया का छठा चरण
- विवाह का प्रमाण पत्र – विवाह अधिकारी मैरिज सर्टिफिकेट पत्र पुस्तिका में एक प्रमाण पत्र दर्ज करता है। यदि दोनों पक्षों और तीन गवाहों द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं, तो ऐसा सर्टिफिकेट कोर्ट मैरिज का निर्णायक प्रमाण है।
कोर्ट मैरिज से जुड़ी बातें
कोर्ट में शादी कैसे होती है?
कोर्ट मैरिज से पहले वर-वधू और गवाहों को रजिस्ट्रार के समक्ष एक घोषणा पत्र पर दस्तख़त करने होते हैं, जिसमें यह लिखा होता है कि ये शादी बिना किसी दबाव के उनकी खुद की मर्जी से हो रही है।
क्या कोर्ट मैरिज करने पर पैसे मिलते हैं?
इस प्रक्रिया के तहत यदि कोई दलित से अंतर जातीय विवाह करता है, तो उस नवदंपति को सरकार ढाई लाख रुपए देती है। नव दंपति में से कोई एक दलित समुदाय से होना चाहिए, जबकि दूसरा दलित समुदाय से बाहर का। यह आर्थिक मदद डाॅ. अंबेडकर स्कीम फाॅर सोशल इंटीग्रेशन थ्रू इंटरकास्ट मैरिज के तहत दी जाती है। शादी को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत रजिस्टर होना चाहिए। इस संबंध में नवदंपति को एक हलफ़नामा दाखिल करना होता है।
कोर्ट मैरिज के लिए अप्लाई करने का नियम
- भारत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक कोर्ट मैरिज करने के लिए अप्लाई कर सकता है।
- रजिस्ट्रार को सबसे पहले नोटिस देना होता है।
- कोर्ट मैरिज का नोटिस अब माता-पिता तक नहीं पहुंचता, बल्कि रजिस्ट्रार के ऑफिस में लगता है।
कोर्ट मैरिज के लिए आवश्यक दस्तावेज
- कंप्लीट आवेदन पत्र और अनिवार्य शुल्क
- दूल्हा-दुल्हन के पासपोर्ट साइज के 4 फोटोग्राफ
- पहचान प्रमाण पत्र (आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस की काॅपी)
- कोर्ट मैरिज के लिए हर राज्य की फीस अलग होती है, लेकिन इसका शुरुआत शुल्क 500 से 1000 रुपये होता है
- दसवीं/बारहवीं की मार्कशीट या जन्म प्रमाण पत्र
- शपथ पत्र जिससे ये साबित हो कि दूल्हा-दुल्हन में कोई भी किसी अवैध रिश्ते में नहीं है।
- गवाहों की फोटो व पैन कार्ड
- अगर तलाक़शुदा है तो तलाक के पेपर, या फिर पूर्व पति-पत्नी मृत हैं तो उनका डेथ सर्टिफिकेट
कोर्ट मैरिज के बाद तलाक
कोर्ट मैरिज करने के बाद आप एक साल तक तलाक नहीं ले सकते। यानि विवाह का कोई भी पक्ष 1 वर्ष की समय सीमा समाप्त होने से पहले तलाक हेतु न्यायालय में याचिका दायर नहीं कर सकता। लेकिन, कुछ मामलों में जहां माननीय न्यायालय को लगता है कि याचिकाकर्ता द्वारा असाधारण कठिनाइयों का सामना किया जा रहा है, या प्रतिवादी द्वारा असाधारण भ्रष्टता दिखाई जा रही है या गई है। ऐसे मामलों में तलाक की याचिका को जारी रखा जा सकता है।
लेकिन यदि न्यायालय द्वारा यह पाया जाता है कि प्रतिवादी द्वारा तलाक की याचिका दायर करने हेतु न्यायालय को भ्रमित किया गया है, तब न्यायालय धारा 29 के तहत 1 वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद भी उसे प्रभावी होने के आदेश दे सकती है।
मैरिज रजिस्ट्रेशन (विवाह प्रमाणपत्र)
कोर्ट मैरिज में शादी का प्रमाण पत्र मिल जाता है, लेकिन नॉर्मल मैरिज के बाद कोर्ट में रजिस्ट्रेशन कराना होता है। मैरिज रजिस्ट्रेशन एक ऑफिशियल सर्टिफ़िकेट है, जो यह साबित करता है कि दो लोगों शादी-शुदा हैं। भारत में शादियों का रजिस्ट्रेशन हिंदू मैरिज एक्ट 1955 या स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत किया जा सकता है। 2006 से सुप्रीम कोर्ट ने शादियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है। ताकि महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखा जा सके।
मैरिज रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की आवश्यकता
पासपोर्ट अप्लाई करने के लिए, नया बैंक अकाउंट खोलने के लिए, वीजा अप्लाई करने के लिए। कई बार शादी के बाद कपल्स विदेश में सेटल हो जाते हैं, उनके लिए शादी का रजिस्ट्रेशन और उसका सर्टिफिकेट जरूरी होता है।
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