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समलैंगिक पुरुष, समलैंगिक स्त्री – क्या परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं? बहुत से समलैंगिक पुरुषों और समलैंगिक स्त्रियों को यह संदेश मिलता है indian gay site कि परमेश्वर उन से घृणा करता है। आप सुनिश्चित हो सकते हैं gay and lesbian history कि परमेश्वर और उसका प्रेम आपका स्वागत करता है। यहाँ देखिए…

 

 

 

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मेरिलिन एडमसन द्वारा

इस जीवन में हमसे कुछ योग्यताओं की आशा की जाती है। एक ‘वाहन चालक लाइसेंस’ प्राप्त करने के लिए आपको उसकी परीक्षा पास करनी पड़ती है। कोई भी नौकरी पाने के लिए, आपको यह सिद्ध करना पड़ता है कि आपके पास उस नौकरी के लिए योग्यता है – यह सिद्ध करना कि आप “योग्य” हैं। यह सिद्ध करना कि आप एक ‘उपयुक्त अभ्यर्थी’ हैं। यह सिद्ध करना कि आप “स्वीकार्य” हैं।

क्या परमेश्वर भी यही सब माँग करता है? आप किस क्षण यह जान सकते हैं कि परमेश्वर पूरी तरह से आपको स्वीकार करता है?

दूसरों के साथ आपका अनुभव चाहे जैसा भी रहा हो लेकिन परमेश्वर के साथ आपका सम्बन्ध इन शब्दों से शुरू नहीं होता – “मुझे स्वीकार कीजिए क्योंकि…”

यह सम्बन्ध परमेश्वर के यह कहने से आरम्भ होता है, “मैं तुम्हें स्वीकार करता हूँ।” “मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ।”

 

 

 

 

 

 

चाहे आप समलैंगिक पुरुष हों, समलैंगिक स्त्री हों, gay and lesbian history उभयलिंगी, विपरीतलिंगी व्यक्ति हों, या आपके पास इनके बारे में प्रश्न हों, gay and lesbian history परमेश्वर हमारा शत्रु नहीं है। यदि आपका पहले से gay and lesbian history ही परमेश्वर के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, तो परमेश्वर आपके साथ एक सम्बन्ध रखना चाहता है। gay and lesbian history और संबंध रखने का परमेश्वर का प्रस्ताव हर किसी के लिए है।

बाइबल के ‘नया नियम’ (न्यू टेस्टमेंट) में आप देखेंगे gay and lesbian history कि एक समूह ने लगातार यीशु मसीह को क्रोधित किया…‘धार्मिक आत्मधर्मी’।

 

 

 

 

 

यीशु मसीह को बाकी सबों के साथ, यहाँ तक कि वेश्याओं और अपराधियों के साथ, भी कोई समस्या नहीं थी। परंतु, धार्मिक विशिष्ट वर्ग से वह कुपित और दुखी थे। gay and lesbian history यीशु मसीह ने उन्हें आलोचनात्मक, अभिमानी, प्रेमरहित और पाखंडी के रूप में देखा।

जब आप इन शब्दों को पढ़ते हैं, तो शायद तुरंत आपने gay and lesbian history अपने मन में उन धार्मिक लोगों के बारे में सोचा जो आपके प्रति अशिष्ट और आलोचनात्मक थे, और जिन्होंने आपको ठेस पहुँचायी। क्या ये सब यीशु के ह्रदय का प्रतिनिधित्व करते हैं? नहीं। यीशु मसीह ने कहा कि आप अपने पड़ोसी से वैसा ही प्रेम कीजिए जैसा कि आप स्वयं से करते हैं। तो आलोचनात्मक, हानिकारक टिप्पणियाँ, कैसे इस के अनुरूप होंगी? किसी भी तरह नहीं!

यह यीशु का ह्रदय प्रकट करता है – यीशु ने कहा, “हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।”1

क्या आपको कभी भी यीशु मसीह के बारे में गंभीरता से सोचने का मौका मिला है?

किसी भी दूसरे इंसान (जो इस धरती पर जिया है) gay and lesbian history के विपरीत, यीशु ‘जीवन’ के बारे में आपको समझाते हैं…gay and lesbian history कि किस प्रकार जीवन का अनुभव किया जा सकता है, gay and lesbian historyबहुतायत से। जिस किसी भी चीज़ का अस्तित्व है, यीशु उन सब का सृष्टिकर्ता है, फिर भी वह मनुष्य के रूप में आए ताकि हम उसे जान सकें, परमेश्वर को जान सकें।

यूहन्ना, यीशु मसीह का एक मित्र, gay and lesbian history यीशु के बारे में यह gay and lesbian history टिप्पणी करता है, “क्योंकि उस की परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया, अर्थात अनुग्रह पर अनुग्रह। इसलिये कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई; परन्तु अनुग्रह, और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुंची।”2

 

 

 

 

“अनुग्रह” एक ऐसा शब्द है जिसका हम अधिक प्रयोग नहीं करते। इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर की दयालुता हमें दी गयी है, उसको पाने के लिए हम को कुछ करना नहीं पड़ता। यीशु हमें अपनी दयालुता और सच्चाई दोनों प्रदान करते हैं, ताकि ये हमें इस भ्रमित करने वाले जीवन में मार्ग दिखा सकें।

मैं अक्सर यह सोचती थी, कि परमेश्वर द्वारा स्वीकार किए जाने के लिए क्या करना पड़ेगा? शायद आप भी मेरी तरह आश्चर्यचकित हो जाएँगे। यहाँ देखिए –

“क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहर चुका; इसलिये कि उस ने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।”3

क्या आपने इस संदेश को समझा? “जो भी उनपर विश्वास करता है।” जो भी उनपर विश्वास करता है उसे अनंत जीवन प्राप्त होता है। जो भी उनपर विश्वास करता है, वह उनके द्वारा बचाया जाता है (उसका उद्धार होता है)। जो भी उनपर विश्वास करता है, वह दंडित नहीं होता ।

 

 

 

 

यीशु हमसे यह करने को कहते हैं… उन पर विश्वास करने को।

यूहन्ना ने यीशु के बारे में कहा, “वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें, जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।”4

वह केवल एक पैगम्बर, शिक्षक या धार्मिक गुरू नहीं थे। यीशु ने कहा कि उन्हें जानना परमेश्वर को जानना है। उनपर विश्वास करना परमेश्वर पर विश्वास करना है। उनका ये सब कहना ही उन्हें क्रूस पर ले गया। लोगों ने उनपर परमेश्वर की निन्दा का आरोप लगाया। लोगों ने कहा कि यीशु ने, “परमेश्वर को अपना पिता कह कर, अपने आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराया॥”5

उन्होंने इसके प्रमाण दिए। यीशु ने अब तक वो सब किया था जो कोई भी मनुष्य नहीं कर सकता था – उन्होंने तत्क्षण अंधों, लंगड़ों और बीमारों को ठीक किया।

पर यीशु इससे भी आगे गए। कई अवसरों पर उन्होंने कहा कि उन्हे पकड़ा जाएगा, मारा जाएगा और क्रूस पर चढ़ाया जाएगा…और तीन दिन के बाद वे पुनर्जीवित होंगे। यह एक ठोस सबूत है। उन्होंने यह नहीं कहा की उनका कोई अवतार होगा, या ऐसा रहस्यमय वादा किया कि “आप मुझे सपनों में देखेंगे।” जी नहीं! उन्होंने साफ़-साफ़ बता दिया की गाढ़े जाने के तीन दिन बाद वे पुनर्जीवित हो जाएँगे।

 

China's gay men and lesbian women are getting married ... to each ...

 

 

 

 

रोमी शासकों को इसके बारे में पता था इसलिए उन्होंने यीशु मसीह की कब्र पर सैनिकों की टुकड़ी का पहरा बैठा दिया।

यीशु मसीह तीन दिन तक यातनाएँ पाने, और क्रूस पर मारे जाने के बाद भी कब्र से पुनर्जीवित हो कर बाहर आए। उनका शरीर जा चुका था। केवल वही कपड़े बाकी थे जिन्हें पहनाकर उन को कब्र में डाला गया था। 40 दिनों के अन्तराल में यीशु मसीह स्वयं, शारीरिक रूप में, कई बार प्रगट हुए। इस तरह मसीही विश्वास और जागा। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वे वही हैं जिसका वे दावा कर रहे थे…मनुष्य के रूप में परमेश्वर; परमेश्वर के तुल्य।

यीशु इस विषय में अत्यन्त स्पष्ट थे, “क्योंकि पिता किसी का न्याय नहीं करता। उसने न्याय करने का पूरा अधिकार पुत्र को दे दिया है, जिससे सब लोग जिस प्रकार पिता का आदर करते हैं, उसी प्रकार पुत्र का भी आदर करें। जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का, जिसने पुत्र को भेजा है, आदर नहीं करता। मैं तुम से सच-सच कहता हूँ: जो मेरा वचन सुनता और जिसने मुझे भेजा, उस में विश्वास करता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जाएगा। वह तो मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेश कर चुका है।”6

आप सोच रहे होंगे, “ठीक है। अनन्त जीवन बहुत अच्छा है। पर अभी, इस जीवन में क्या है?”

आप, यह जानते हुए कि परमेश्वर आपसे प्रेम करता है अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं ।

हर किसी में प्रेम पाने की अभिलाषा होती है। मनुष्य का प्रेम महत्त्वपूर्ण होता है। फिर भी जो भी मनुष्य आपसे प्रेम करता है, उसका प्रेम अपूर्ण होता है, क्योंकि मानव अपूर्ण होते हैं।

परन्तु परमेश्वर आपसे पूर्ण रूप से प्रेम करते हैं। वे हमें प्रेम करते हैं क्योंकि प्रेम करना उनके स्वभाव में है, और यह न तो कभी बदलता है, और न ही कभी समाप्त होता है।

 

 

 

 

 

हम सब कुछ ना कुछ बिगाड़ते हैं। हम सब अपने जीवन जीने के ही मापदंड पर खरे नहीं उतर पाते, परमेश्वर के मापदंड की तो छोड़िए। पर परमेश्वर हमें हमारे कार्यों के अनुसार हमें स्वीकार नहीं करता। वह हमें स्वीकार करता है जब हम उस पर विश्वास करते हैं, उसके पास जाते हैं, और उसे अपने जीवन में आने के लिए आमंत्रित करते हैं।

यीशु मसीह ने निम्नांकित तरीके से उनके साथ सम्बन्ध बनाने का वर्णन किया है:

“जिस प्रकार पिता ने मुझ से प्रेम किया है, उसी प्रकार मैंने भी तुम से प्रेम किया है। तुम मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे; जैसे मैंने भी अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया है और उसके प्रेम में बना रहता हूँ। मैंने तुम से यह इसलिए कहा है कि मेरा आनंद तुम में हो और तुम्हारा आनंद परिपूर्ण हो जाए। मेरी आज्ञा यह है: जिस प्रकार मैंने तुम से प्रेम किया है, उसी प्रकार तुम भी एक-दूसरे से प्रेम करो।”7

यदि आप उनकी बात मानते हैं तो क्या होगा? यदि आप परमेश्वर के साथ एक सम्बन्ध आरम्भ करें तो क्या होगा?

आपके जीवन में किसी भी महत्वपूर्ण सम्बन्ध का आप पर प्रभाव पड़ता है, सकारात्मक या नकारात्मक रूप से। सही? यह सभी के लिए सच है। सम्बन्ध जितना अधिक महत्वपूर्ण है, उसका प्रभाव भी उतना ही ज्यादा होता है।

इसलिए, यह समझ में आता है कि परमेश्वर को जानना एक महत्वपूर्ण सम्बन्ध होगा। परमेश्वर आपके जीवन का नेतृत्व, उनके प्रेम और उनकी इच्छाओं के द्वारा करेगा। आप अभी भी अपना निर्णय स्वयं लेंगे। आप अपनी स्वतंत्र इच्छा को बनाए रखते हैं। वह ऐसे आपके जीवन पर नियंत्रण नहीं करता कि वह कुछ भी करने के लिए आपको मजबूर करे। फिर भी, मैंने अपने आप को उसकी बुद्धिमता, दयालुता और जिस प्रकार परमेश्वर लोगों को, और उनके जीवन को देखता है, उससे प्रभावित पाया।

 

 

 

 

 

परमेश्वर समाज से संकेत नहीं लेता। परमेश्वर, जिसने इस संसार की रचना की, उसे समाज के निर्देशन की आवश्यकता नहीं है। मुझे यह पसंद आया। इस सोच से मुझे मुक्ति का अनुभव होता है।

जब मैंने परमेश्वर के साथ एक सम्बन्ध बनाया, परमेश्वर ने मेरे जीवन में यह किया –

मैं एक नास्तिक थी। परमेश्वर पर विश्वास करना, उसके बारे में बाइबल में पढ़ना, मेरे जीवन का एक बहुत बड़ा बदलाव था। वास्तव में यह बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण था।

यीशु मसीह को अपने जीवन में ग्रहण करने के कुछ महीनों बाद, मेरी सहेली ने मुझसे पूछा, “क्या तुमने अपने जीवन में कोई परिवर्तन महसूस किया है?” और मैंने कहा, “तुम्हारा क्या मतलब है?” उसने कहा, “अब जब मैं तुमसे बात करती हूँ, तो तुम उसका मजाक नहीं बनाती हो। ऐसा लगता है कि अब तुम ध्यान से मेरी बात सुन रही हो।”

यह सुनकर मैं थोड़ी शर्मिंदा हई। यहाँ मेरी सबसे क़रीबी दोस्त मुझसे कह रही थी कि आखिरकार मैं एक सभ्य इंसान की तरह पेश आने लगी थी, और उसकी बात सुनने लगी थी! (मेरे जीवन के बदलाव को महसूस करके वह इतनी हैरान हुई कि उसने भी यीशु मसीह को अपने जीवन में ग्रहण करने का फैसला ले लिया।)

 

Have you ever had a chance to think seriously about Jesus Christ?

Unlike any other person (who has lived on this earth), Jesus explains to you about ‘life’… how life can be experienced, abundantly. Everything that exists, Jesus is the creator of them all, yet he comes in human form so that we can know him, know God.

John, a friend of Jesus Christ, comments about Jesus, “because of his fullness we have all received, that is, grace over grace. Because the law was given by Moses; But grace and truth came through Jesus Christ. ” 

“Grace” is a word that we don’t use very often. This means that God’s kindness is given to us, we don’t have to do anything to get it. Jesus offers us both our kindness and truth, so that they can show us the path in this confusing life.

 

 

 

 

I often wondered what it would take to be accepted by God? Maybe you will be surprised like me too. Look here

“Because God so loved the world that he gave his only-begotten Son, that whoever believes in him should not perish, but have eternal life.” God did not send his son into the world to order punishment on the world, but because the world would be saved through him. He who believes in him is not punished, but he who does not believe in him has been convicted; Because he did not believe in the name of the only begotten Son of God. ” 

Did you understand this message? “Whoever believes in him.” Whoever believes in him gets eternal life. Whoever believes in him is saved by him (he is saved). Whoever believes in him is not punished.

Jesus tells us to do this… to believe in them.

 

 

 

 

John said of Jesus, “He came to his house and his own people did not receive him.” But as many as received him, he gave them the right to be children of God, that is, those who believe in his name. ” 

He was not merely a prophet, teacher or religious teacher. Jesus said that to know them is to know God. To believe in Him is to believe in God. Saying all these things took him to the cross. People accused him of blasphemy. People said that Jesus, “calling God his father, made himself equal to God.” 

He gave evidence of this. By now, Jesus had done what no human could do – he immediately cured the blind, the lame, and the sick.

But Jesus went even further. On many occasions he said that he would be caught, killed and crucified… and after three days he would be resurrected. This is a solid proof. He did not say that he would have an avatar, or made such a mysterious promise that “you will see me in my dreams.” No! He clearly told that he would be revived after three days of being buried.

The Roman rulers knew about this, so they guarded a troop of soldiers at the tomb of Jesus Christ.

 

 

 

 

 

Jesus Christ came out of the tomb after being tortured for three days, and died on the cross. His body was gone. The only clothes left were those worn and put into the tomb. In the interval of 40 days, Jesus Christ himself, in physical form, manifested many times. In this way the Christian faith was awakened. They proved that they are what they were claiming… God as a human being; Like God.

Jesus was very clear about this, “because the Father does not judge anyone. He has given full authority to do justice to the son, so that everyone respects the father in the same way as the father. He who does not respect the son, does not respect the father who sent the son. I tell you the truth: Whoever hears my word and believes in who sent me has eternal life. He will not be convicted. He has crossed death and entered life. ” 

 

 

 

 

Why Doesn't My OB/GYN Understand Lesbian Sex?

 

 

 

यहाँ वो है जो मुझे समलैंगिक लगता है मेरे जीवन में हो रहा था-

जब मैंने परमेश्वर के समलैंगिक साथ एक सम्बन्ध शुरू समलैंगिक किया, तब मेरे प्रति परमेश्वर के प्रेम को देख कर मैं अत्यंत जागरूक हो गई। समलैंगिक मुझे वास्तव में बड़ा समलैंगिक आश्चर्य हुआ। जिन चीजों के बारे में समलैंगिक मैं बाइबल में पढ़ रही थी, वे मेरे लिए परमेश्वर के समलैंगिक निजी संदेश बन गए, जो बता रहे समलैंगिक थे की वो मुझसे कितना प्रेम करते हैं। समलैंगिक (बचपन से मैं यह सोचती थी की समलैंगिक परमेश्वर हमसे क्रोधित/नाराज़ हैं, क्योंकि हम उसके मापदंड पर खरे नहीं उतरते।) तो यह मेरे लिए अचम्भे की बात थी — कि परमेश्वर हमसे प्रेम करते हैं।

मुझे लगता है कि प्रेम की मेरी भावनात्मक समलैंगिक ज़रूरत समलैंगिक मुझे परमेश्वर से इतने गहरे स्तर पर मिली, की मैं अपने आपको भावनात्मक रूप से सुरक्षित देखने लगी। मैं और अधिक सोचने लगी, और अपनी जगह, दूसरों के बारे में परवाह करने लगी। समलैंगिक और समलैंगिक नि:संदेह मैं एक बेहतर सुनने वाली, और दूसरों की परवाह करने वाली बन गयी। समलैंगिक मुझे यह भी लगता है कि जिस जातीय भेदभाव मानसिकता में मैं पली बढ़ी थी, वह कम हो रहा था।

जैसे-जैसे हम यीशु मसीह से सीखेंगे और उसे मार्ग प्रदर्शन करने देंगे, तो वह वादा करता है कि, “तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।”8

 

 

 

 

 

अगर आप यीशु के साथ lesbian porn एक सम्बन्ध आरम्भ lesbian porn करेंगे तो अपने आप में एक परिवर्तन महसूस करेंगे- अपनी मनोवृत्तियों में, lesbian porn या आशावादिता में, lesbian porn या दूसरों को आप किस तरह देखतें है, या आप अपना समय किस प्रकार व्यतीत करते हैं, lesbian porn उसमें। केवल परमेश्वर जानता है। पर जैसे–जैसे आप उन्हें lesbian porn जानेंगे, आपका lesbian porn जीवन उनसे प्रभावित होता जाएगा। जो यीशु का अनुसरण करते हैं उनसे पूछिए, वे आपको बताएंगे lesbian porn कि किस तरह उसे जानने से उनका जीवन प्रभावित हुआ है।

वह हम में उसके बताए रास्ते को चुनने की प्रबल इच्छा जागृत करता है। lesbian porn वह ऐसा कैसे करता है यह अप्रत्याशित है। ऐसा नहीं है कि वह आपको नए आदेश देता है lesbian porn जिसे आपको मानना ही होगा। यह स्वयं का प्रयास नहीं है, lesbian porn और ऐसा भी नहीं है lesbian porn कि आप परमेश्वर के लिए कोई प्रदर्शन कर रहे हैं। lesbian porn यह धार्मिक समर्पण भी नहीं है। lesbian porn यह एक सम्बन्ध है, परमेश्वर के साथ एक आत्मीय, एक घनिष्ठ मित्रता है। इसका मतलब है कि परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से आपका नेतृत्व कर रहा है lesbian pornऔर आपको उसके बारे में, lesbian porn  जीवन के बारे, में सिखा रहा है। परमेश्वर हमारे जीवन में तभी प्रवेश करता है जब हम उसे अपने जीवन में आने के लिए आमंत्रित करते हैं। वह हमारे जीवन को प्रभावित करता है, अंदर से, दिल के स्तर पर।

यीशु मसीह आपको जीवन की पूर्णता देते हैं। आप जानते हैं किस तरह रिश्ते, नौकरी, खेल, मनोरंजन…इन सब में महान क्षण होते हैं, फिर भी कुछ कमी लगती है। इनसे मिला हुआ संतोष हमें पूर्ण संतुष्टि प्रदान नहीं करता है। और इस धरती का कुछ भी हमें यह प्रदान नहीं कर सकता।

एक विश्वसनीय, हमेशा स्थायी चीज़ की हमें निरंतर भूख रहती है। यीशु ने उन से कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ; जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा।”9 उन्होंने अपना यह वाक्य यह कह कर पूरा किया, “…और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी न निकालूँगा।”9 मैंने कई सालों तक जीवन के ऐसे दर्शन को खोजा, जो किसी भी परिस्थिति में हमेशा काम करे। परमेश्वर को जानने के बाद मेरी वह खोज समाप्त हो गई। मुझे वह विश्वास करने के योग्य लगे।

उनके साथ आपका सम्बन्ध, आपको किसी और के साथ उनके सम्बन्ध से बिल्कुल अलग लगेगा। क्योंकि, आप एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिसके अपने अद्वित्य अनुभव, विचार, सपने और जरूरतें हैं।

 

मैं इस समय इस मुद्दे पर चिन्तित हूँ कि मैं आपको परमेश्वर को जानने के केवल लाभ बता रही हूँ।

परमेश्वर से सम्बन्ध इस बात की lesbian sex गारंटी नहीं देता कि आप जीवन की कठिनाइयों से बच जाएँगे। हो सकता है lesbian sex कि आप lesbian sex वित्तीय तनाव, भयानक बीमारी, दुर्घटना, भूकंप, रिश्तों में दिल को चोट, आदि, से हो कर निकले।

इसमें कोई lesbian sex सवाल lesbian sex नहीं है कि इस जीवन में lesbian sex पीड़ा और कष्ट हैं। आप उसे अकेले झेल सकते हैं, या फिर आप lesbian sex इस बात से lesbian sex निश्चिंत हो कर जी सकते हैं कि परमेश्वर का प्रेम, उसका साथ, और निकटता, पीड़ा के क्षण में हमारे साथ है।

दूसरी ध्यान रखनेवाली बात यह है कि, lesbian sex हो lesbian sex सकता है परमेश्वर आपको किसी चुनौतीपूर्ण व्यवसाय में ले जाए, जिसमें दूसरों का ध्यान रखने के लिए lesbian sex आपको निजी बलिदान देना पड़े।

यीशु के अधिकांश चेले (और lesbian sex यीशु के आज के कई अनुयायीयों) को भारी पीड़ा के माध्यम से गुज़रना पड़ा है। lesbian sex उदाहरणस्वरूप – पॉल (पौलुस) को lesbian sex कई बार गिरफ़्तार किया गया, अनगिनत बार बेंत और lesbian sex कोड़ों से पीटा गया। एक बार तो क्रोधित भीड़ ने उसे पत्थरों से इतना मारा कि वह मरते-मरते बचा।lesbian sex  बहुत बार समुद्र में उसका जहाज़ टूटा, बहुत दिन वह बिना खाने के रहा, बहुत बार अपने जीवन की रक्षा के लिए उसे इधर – उधर भागना पड़ा।

 

 

 

 

 

 

स्पष्टतः, यीशु के अनुयायियों का जीवन आसान नहीं था। फिर भी पॉल (पौलुस), और अन्य विश्वासी भयभीत नहीं हुए और न ही विश्वास में डगमगाए, क्योंकि वे जानते थे की परमेश्वर उनसे प्रेम करता है और उन्हें परमेश्वर के प्रेम पर विश्वास था।

पौलुस लिखता है, “परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा, जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं। क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी॥”10

आप अपने जीवन की योजना मत बनाइए। यदि आप समलैंगिक पुरुष या स्त्री हों, उभयलिंगी, या विपरीतलिंगी हों, या आपके अनेक प्रश्न हों…यदि आप उसे करने दें, तो यीशु आपके जीवन को निर्देशित करेंगे। और यह आपकी कल्पना से कहीं ज्यादा बड़ा होगा। यीशु ने कहा, “जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”11

यहाँ बताया गया है कि आप परमेश्वर के साथ, अभी, एक सम्बन्ध कैसे आरम्भ कर सकते हैं-

आपने अपने जीवन में चाहे जो कुछ भी किया हो, यीशु मसीह आपको पूर्ण क्षमा प्रदान करते हैं। हमारे पापों को केवल अनदेखा नहीं किया गया, उसकी कीमत चुकाई गयी है – यीशु ने हमारी जगह, क्रूस पर अपने प्राण देकर, इसकी कीमत अदा की है।

क्या किसी ने आपके लिए कभी बलिदान दिया है? यीशु ने परम स्तर पर ऐसा किया है। वह आपको बहुत प्रेम करता है। वह आपके हृदय में आकर, आपसे एक सम्बन्ध बनाना चाहता है।

क्या आप परमेश्वर को जानना चाहते हैं? indian gay site अगर आपने अब तक परमेश्वर को अपने जीवन में निमंत्रित नहीं किया है, indian gay site तो मैं आपको प्रोत्साहित करती हूँ कि आप उसे अपने जीवन में आने को कहें। वह कहते हैं indian gay site कि केवल यही वो सम्बन्ध है जो हमें तृप्त करता है। उसके बिना इस जीवन में indian gay site आगे बढ़ने का कोई अर्थ नहीं है।

 

 

 

 

 

 

आप जो भी शब्द चाहते हैं indian gay site उसका उपयोग करindian gay site  के परमेश्वर से बात कर सकते हैं। अगर आप को indian gay site मदद की जरूरत है, indian gay site तो यहाँ शब्द दिए गए हैं जो आप कह सकते हैं –

“यीशु मसीह, मैं आप पर विश्वास करता/करती हूँ। indian gay site मेरे पापों के लिए क्रूस पर चढ़ कर जान देने के लिए, indian gay site और अपने साथ सम्बन्ध बनाने का मौका देने के लिए आपका धन्यवाद। मैं चाहता/चाहती हूँ कि indian gay site आप मेरे जीवन के परमेश्वर बनें, मैं आपको जानना चाहता/चाहती हूँ, आपके प्रेम का अनुभव करना indian gay site चाहता/चाहती हूँ, और इसी समय से, मैं आपको मेरे जीवन का नेतृत्व करने के लिए कहता/कहती हूँ।”

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