जोशीमठ के मकानो और सड़कों में बड़ी बड़ी दरारें देखकर आपको लगेगा की यहाँ कोई भूकंप आया था | लेकिन इस प्राचीन शहर में ये बड़ी बड़ी दरारें किसी भूकंप की वजह से नहीं बल्कि लैंडस्लाइड की वजह से आई हैं | जोशीमठ का इतिहास इतना स्वर्णिम है कि इसे इस तरह बर्बाद होते देखना मुश्किल है | इस लेख में हम जानेंगे जोशीमठ का इतिहास, जोशीमठ कहां है, जोशीमठ नरसिंह मंदिर के बारे में, जोशीमठ के शंकराचार्य के बारे में और जोशीमठ क्या है? जोशीमठ की दरारों को देखकर लगता है मानो हम बड़ी तेज़ी से विनाश की और बढ़ रहे हैं | Joshimath History in Hindi

 

Joshimath History in Hindi

ऐसा लग रहा है की थोड़े समय में ही जोशीमठ की पूरी ज़मीन धँस जाएगी और ये शहर मिट्टी में समा जाएगा | इसरो ने जोशीमठ की सेटेलाइट इमेज रिलीज की हैं जिसमें दिखाई दे रहा है की सिर्फ़ 12 दिनों में जोशीमठ की ज़मीन 5.4 सेंटीमीटर धँस गई है |  उत्तराखंड के इस प्राचीन शहर और गेटवे ऑफ हिमालया के नाम से प्रसिद्ध जोशीमठ पर मंडरा रहे ख़तरे ने सरकारों को फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है |  678 मकानो में दरारें आने से लोग दहशत में है और सरकार ने इन घरों को रहने के लिए अनफिट घोषित कर दिया है   जोशीमठ के बारे में अब सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है लेकिन यहाँ दरारें आने का सिलसिला बीते साल नवंबर से शुरू हो गया था | 

You May Also Like!

 

 

अब यहाँ की मुख्य सड़क में दरार आने के बाद मीडिया का ध्यान इसकी ओर गया है  

घरों और सड़कों में दरारें आ जाने के बाद स्थानीय लोगों ने हाथों में मशालें लेकर जुलूस निकाला ताकि सरकार को जगाया जा सके.  इसी साल 6 जनवरी को यहाँ के मारवाड़ी वॉर्ड में जमीन से पानी के फन्न्वारे फुट गये जिसके बाद 35 घरों को तुरंत खाली करवाया गया. अब लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट करने का सिलसिला लगातार जारी है | आइये जानते हैं

जोशीमठ नरसिंह मंदिर का इतिहास

जोशीमठ ही वो जगह है जहाँ भगवान नरसिंह का मंदिर है | नरसिंह, भगवान विष्णु के ही अवतार थे और जब भगत प्रहलाद ने भगवान विष्णु को पुकारा था तो उन्होने नरसिंह के रूप में प्रहलाद को दर्शन दिए थे और हिरण्यकश्यप का वध किया था.

लेकिन हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी भगवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ. तब प्रहलाद ने तप करके उनका क्रोध शांत किया जिसके बाद भगवान नरसिंह शांत रूप में जोशीमठ में विराजमान हुए.

आज उसी जगह भगवान नरसिंह का मंदिर है. सर्दियों में जब बद्रीनाथ धाम में बर्फ जम जाती है तो भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति को भी इसी मंदिर में रखा जाता है और यहीं उनकी पूजा की जाती है.

जोशीमठ के प्रसिद्ध होने का एक और कारण है आदि गुरु शंकराचार्य | 

 

 

जोशीमठ के शंकराचार्य की कहानी

शंकराचार्य ने पूरे भारत में 4 दिशाओं में 4 मठ स्थापित किए थे

रामेश्वरम में श्रृंगेरी मठ

उड़ीसा के पुरी में गोवर्धन मठ

गुजरात में द्वारकाधाम में शारदा मठ 

और  

उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ 

ज्योतिर्मठ, जोशीमठ का ही नाम है और इसे पहले ज्योतिर्मठ के नाम से ही जाना जाता था | सदियों से ये जगह वैदिक शिक्षा और ज्ञान का केंद्र रही है इसकी स्थापना शंकराचार्य ने 8 वीं शताब्दी में की थी |  इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है और इसके पहले मठाधीश आचार्य तोटक थे

यहीं वो 2400 वर्ष पुराना कल्पवृक्ष भी है जिसके नीचे आदि गुरु शंकराचार्य ने कठोर तप किया था. ये कल्पवृक्ष जोशीमठ के पुराने शहर में मौजूद है.

जोशीमठ आने वाले श्रद्धालु इस वृक्ष के दर्शन करने ज़रूर आते हैं.

मंदिर के एक हिस्से शंकराचार्य की लो भी जल रही है और इस ज्योति के दर्शन की भी बहुत अहमियत मानी जाती है.

जोशीमठ ही वो स्थान है जहाँ शंकराचार्य ने शंकर भाष्य की रचना की थी जो की सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथों में से एक है. 

 

जोशीमठ के विनाश की भविष्यवाणी

जोशीमठ में दरार आना महज इत्तेफाक नहीं है इसकी भविष्यवाणी तो सालों पहले की जा चुकी है.

कहा जाता है की यहाँ के नरसिंह मंदिर में भगवान नरसिंह की मूर्ति की दाहिनी भुजा लगातार पतली होती जा रही है और स्कंद पुराण के केदारखंड में इसके बारे में लिखा है की जब ये भुजा टूटकर गिर जाएगी तो नर पर्वत और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएँगे | 

इन पर्वतों के मिल जाने से बद्रीनाथ धाम तक पहुँचने का रास्ता बंद हो जाएगा | 

जिसके बाद भगवान बद्रीनाथ की पूजा बद्रीनाथ धाम में नहीं बल्कि भविष्य बद्री में होगी. ये जगह बद्रीनाथ से 18 किलोमीटर की दूरी पर तपोवन में है |

 

Joshimath kya hai (स्वर्ग का द्वार)

जोशीमठ में दरार आने से जिस तरह मीडिया और सोशियल मीडिया में इसकी चर्चा हो रही है उसका एक कारण और भी है.

वो ये की जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार भी कहा जाता है. जोशीमठ को जब आप पार करेंगे तो आप पहुँच जाएँगे फूलों की घाटी में और फिर पहुंचेंगे औली | इस जगह की सुंदरता के कारण इसे स्वर्ग जैसा कहा जाता है | 

सर्दियों में इस जगह सैंकड़ों टूरिस्ट्स पहुँचते हैं और Skiing का मजा लेते हैं | 

लेकिन एक पौराणिक कथा के आधार पर भी इसे स्वर्ग का द्वार कहते हैं.

महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद जब पांडव स्वर्ग के द्वार की और बढ़ रहे थे तो उन्होने इसी रास्ते को चुना था.

जोशीमठ को पार करके पांडव बद्रीनाथ के पास स्वर्गारोहिणी नाम के एक पर्वत शिखर पर पहुँच गये थे. इसी जगह से एक एक करके सभी ने युधिष्ठर का साथ छोड़ दिया था. और इसके आगे के सफ़र पर धर्मराज युधिष्ठिर के साथ सिर्फ़ एक कुत्ता गया था.

ये वो पौराणिक कारण है जिसकी वजह से जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है |

 

जोशीमठ कहाँ है (जोशीमठ की भोगोलिक स्थिति)

ये शहर समुंद्र तल से लगभग 6000 फीट उँचाई पर स्थित है. अगर आपको ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाना हो तो ये शहर उस रास्ते में नेशनल हाईवे 7 पर आपको मिलेगा.

अलकनंदा नदी के बाएं किनारे पर स्थित ये शहर भारत के सबसे ज़्यादा भूकंप प्रभावित इलाक़े ज़ोन 5 में आता है.

हाल ही में यहाँ आई दरार से इस शहर की इमारतों की स्थिति ऐसी हो चुकी है की 2 से 3 रिक्टर स्केल के भूकंप से यहाँ सब कुछ ढह सकता है | 

सालों से बद्रीनाथ और सिखों के पवित्र स्थान हेमकुंड साहिब जाने वाले यात्री यहाँ रुक कर आगे की यात्रा पूरी करते हैं..

सर्दियों के मौसम में यहाँ से औली भी बहुत से टूरिस्ट्स जाते हैं 

यही वजह है की इतने सालों में यहाँ बहुत से होटलों का निर्माण हुआ है.

 

जोशीमठ आर्मी के लिए है अहम

जोशीमठ श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र तो है ही लेकिन आर्मी के लिए इसका बहुत ज़्यादा महत्व है |  

1962 के भारत चीन युद्ध में भी भारतीय सेना इसी जगह रुकी थी. चीन सीमा पर स्थित नीति माणा गांव जाने का रास्ता यहीं से होकर गुज़रता है.

1962 के युध में भारत की हार हुई थी, उस हार के क्या कारण थे उसका वीडियो आप ऊपर आई बटन पर क्लिक करके देख सकते हैं.

हाल के दिनों में भी चीन भारत के खिलाफ आक्रामक रुख़ अपनाए हुए है जिसके चलते सीमा पर रसद पहुँचने के लिए चार धाम रोड परियोजना की अहमियत बढ़ गई है. 

पर यही परियोजना ही कहीं, जोशीमठ और आस पास के क्षेत्र के लिए ख़तरा तो नहीं बन गई ?

इस परियोजना से पहाड़ों को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की गयी थी लेकिन सरकार के पक्ष में फ़ैसला आने के बाद ये परियोजना फिर से शुरू हो गई | 

पर इस परियोजना ने अब अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया है..

इसके अलावा जोशीमठ की इस हालात का ज़िम्मेदार कौन है आइए जानते हैं…

 

जोशीमठ क्यों डूब रहा है

जोशीमठ के इतिहास के बारे में हिस्टोरियन शिव प्रसाद डबराल कह चुके हैं की जोशीमठ में 1000 साल पहले एक लैंडस्लाइड आया था. उस समय यहाँ कत्यूरी राजवंश का शासन था. कत्यूरी राजवंश के समय में जोशीमठ का नाम कीर्तिपुर था और यही इस राजवंश की राजधानी भी था.

यहाँ आइए भूस्खलन के बाद कत्यूर राजाओं को अपनी राजधानी जोशीमठ से दूसरी जगह शिफ्ट करनी पड़ी थी.

1960 में सबसे पहले यहाँ मकानो में दरार आई थी जिसके बाद ये पता  चला की यहाँ ख़तरनाक लैंडस्लाइड्स हो सकती हैं. 

1976 के आस पास भी जोशीमठ में लैंडस्लाइड्स की काफ़ी घटनायें हुई थी और उस समय कमिश्नर गढ़वाल मंडल की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गयी थी.

इस कमेटी की रिपोर्ट में साफ कहा गया था की जोशीमठ किसी ठोस चट्टान पर नहीं बसा है बल्कि ये पहाड़ों के मलबे पर बना है जो कभी भी दरक सकते हैं.. 

अगर इस जगह को बचाना है तो इसके आस पास की चट्टानों को नहीं छेड़ना चाहिए और यहाँ कंस्ट्रक्शन के काम को बंद कर देना चाहिए. 

साथ ही यहाँ और आस पास बहुत सारे पेड़ लगाने की बात भी की गयी थी, पर आगे के इतने वर्षों में सब काम इसके उलट किए गये. 

यहाँ आर्मी के लिए कैंप बनाया गया, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाया गया, बड़े बड़े होटलों का निर्माण किया गया, NTPC द्वारा बनाए गये

Tapovan Vishnugadh हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट और चार धाम परियोजना के तहत बन रहे Helang Bypass ने जोशीमठ को भारी नुकसान पहुँचाया.

हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट के लिए टनल खोदी गयी जिसके लिए बार बार ब्लास्ट किए गये जिसके चलते जोशीमठ की आज ये हालात है.

हालात को देखते हुए Heland और Marwari के बीच चार धाम योजना, तपोवन विष्णुगढ़ प्रॉजेक्ट और जोशीमठ – औली रोपवे प्रॉजेक्ट को रोक दिया गया है. 

पर क्या जोशीमठ को बचाया जा सकता है. शायद अब इसमें बहुत देर हो चुकी है और अब लोगों को दूसरी जगहों पर ले जाकर ज़िंदगियों को बचाए जाने का अभियान ही चलाया जा सकता है. 

दोस्तों आपको क्या लगता है जोशीमठ की इस हालत का कौन जिम्मेदार है नीचे कमेंट करके जरूर बताएं और जोशीमठ का इतिहास अपने दोस्तों के साथ शेयर करें |  

 

 

Joshimath History in Hindi Joshimath History in Hindi  Joshimath History in Hindi  Joshimath History in Hindi  Joshimath biography in Hindi Joshimath biography in Hindi Joshimath biography in Hindi Joshimath biography in Hindi Joshimath biography in Hindi Joshimath konse in Hindi Joshimath konse in Hindi Joshimath konse in Hindi Joshimath konse in Hindi Joshimath konse in Hindi