Samuel Hahnemann Biography in Hindi

सैमुएल हैनिमैन का जन्म 1755 में हुआ था वह यूरोप देश के जर्मनी के निवासी थे उन्होंने वह एलोपैथी के चिकित्सक थे साथ में बहुत सारी यूरोपियन भाषाओं के ज्ञाता भी थे उनके पिताजी एक पेंटर थे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी उनके परिवार में गरीबी थी बचपन में उन्हें गरीबी के हालात से गुजरना पड़ा था सबसे पहले उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त की उसके बाद एक मेडिकल की तैयारी करने के लिए कॉलेज गए इनकी पारिवारिक स्थिति कमजोर होने के कारण इन्हें परेशानी का सामना करना पड़ा इनके कॉलेज के एक अध्यापक ने इनकी गरीबी को देखकर इनकी पढ़ाई में इनका सहयोग किया और पैसे की तंगी के के बाद भी इनकी पढ़ाई लगातार चलती रही जब उन्होंने मेडिकल कंप्लीट किया तो इन्हें प्रेक्टिस करना था प्रेक्टिस करने के लिए ये गांव गांव में प्रक्टिस करने लगे लेकिन प्रेक्टिस करने के दौरान उन्हें उस समय की चिकित्सा प्रणाली ठीक नहीं लगी क्योंकि उस समय आधुनिक तरह तरह से चिकित्सा करने की प्रणालियों की कमी थी जिस वजह से उन्होंने अपनी प्रेक्टिस को बीच में ही छोड़ दिया और इसके बाद उनकी शादी कर दी गई.(Samuel Hahnemann Biography in Hindi) 

 

 

 

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Samuel Hahnemann Biography in Hindi

 

 

 

अपनी जीविका को चलाने के लिए ये तरह तरह की किताब अनेक भाषाओं में अनुवाद करने लगे ये अंग्रेजी से जर्मनी में अनुवाद करने लगे साथ में रसायन शास्त्रों में भी उन्होंने उस समय शोध किया एक समय की बात है ये एक डॉक्टर कलेन की लिखी किताब का जर्मनी भाषा में अनुवाद कर रहे थे तो उन्हें एक कुनेन नाम की जड़ी के बारे में पता लगा उसमें लिखा था यह जड़ी मलेरिया जैसे और रोगों को खत्म करती है लेकिन इसका उपयोग अगर स्वस्थ व्यक्ति पर किया जाए तो उसमें मलेरिया जैसे लक्षण होने लगते हैं

एक बार जब अंगरेज डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” में वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे में अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डॉ॰ हैनिमेन का ध्‍यान डॉ॰ कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्‍य करती है, लेकिन यह स्‍वस्‍थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है।

कलेन की कही गयी यह बात डॉ॰ हैनिमेन के दिमाग में बैठ गयी। उन्‍होंनें तर्कपूर्वक विचार करके क्विनाइन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्‍द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्‍य हो गया। इस प्रयोग को डॉ॰ हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डॉ॰ हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से की। इस मित्र चिकित्‍सक नें भी डॉ॰ हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये।

 

 

 

 

कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया।

हैनिमेन की अति सूच्‍छ्म द्रष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्‍कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय।

इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डॉ॰ हैनिमेन नें तत्‍कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया। इसे होम्‍योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्‍वरूप कहा जा सकता है।

 

 

 

 

होम्योपैथी का विकास

Viennese चिकित्सक एंटोन वॉन Störck, के अग्रणी काम के बाद, Hahnemann एक स्वस्थ व्यक्ति, presupposing (जैसा वॉन St’ruck का दावा किया था) पर उत्पन्न प्रभावों के लिए पदार्थों का परीक्षण किया है कि वे उसी बीमारियों है कि वे कारण होता है चंगा कर सकते हैं उनके शोध ने उन्हें वॉन स्ट्रार्क से सहमत होने के लिए प्रेरित किया कि निहित पदार्थों के जहरीले प्रभाव अक्सर कुछ बीमारियों के समान रूप से समानांतर होते हैं, और चिकित्सा साहित्य में विषाक्त होने के ऐतिहासिक मामलों की उनकी अन्वेषण ने और अधिक सामान्यीकृत औषधीय “समानता के कानून” । बाद में उन्होंने अपने विषाक्त प्रभावों को कम करने के लिए परीक्षण करने वाली दवाओं को कम करने के तरीके तैयार किए। उन्होंने दावा किया कि इन dilutions, जब कमजोर पड़ने और succussion (जोरदार मिलाते हुए) का उपयोग “potentization” की अपनी तकनीक के अनुसार तैयार किया गया था, अभी भी बीमार में ही लक्षणों को कम करने में प्रभावी रहे थे। खुराक में कमी के साथ उनके अधिक व्यवस्थित प्रयोगों वास्तव में 1800-01 के आसपास शुरू हुई, जब उनके “सिमुलारों के कानून” के आधार पर, उन्होंने खांसी के उपचार के लिए आईपैकुआना और लाल रंग के बुलाडोना के इलाज के लिए शुरू कर दिया था।

रोग के कॉफी सिद्धांत

उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दिनों में, हेनमैन ने एक सिद्धांत विकसित किया है, जो अपने 1803 निबंध ओफ़ द इफेक्ट्स ऑफ कॉफी ऑफ़ मूल टिप्पणियों में पेश किया है, कि कई बीमारियां कॉफी के कारण होती हैं हनीमैन ने बाद में सिद्धांत के पक्ष में कॉफी सिद्धांत को छोड़ दिया कि बीमारी पीसो के कारण होती है


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