Kabir Das ke Dohe in Hindi : कबीर के मशहूर दोहे हिंदी अर्थ सहित Kabir ke Dohe in Hindi : जब भी दोहों के बारे में कोई चर्चा करता है तो संत कबीर दास का नाम सबसे पहले आता है। कबीर जी के दोहों में एक अलग प्रकार की शक्ति होती है जिसके मायने हमारी जिंदगी में एक सकारात्मक बदलाव ला सकते है। अंग्रेजी भाषा में जैसे शेक्सपियर के छंद मशहूर है ऐसे ही हिंदी संस्कृत और भोजपुरी में अगर दोहों के बात की जाए तो कबीर से बड़ा नाम कोई नहीं है।

 

 

 

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कबीर के दोहों की विशेषता है उनकी सरल भाषा, वो अपने दोहों में ऐसे संस्कृत और हिंदी के शब्दों का मेल करते थे जिनकी कोई गली का आम आदमी भी आसानी से समझ सके। ये माना जाता है कबीर जी के प्राथमिक आध्यात्मिक शिक्षा उन्हें गुरु रामानंद से मिली। चलिए कबीर के दोहे अर्थ सहित : Kabir Das ke Dohe with Meaning जानने से पहले उनके जीवन के कुछ अनजाने पहलुओं के बारे में जानते है।

कबीर दस का जन्म 1398 में वाराणसी के पास लाहरार्ता में हुआ। ये कहा जाता है उनका जन्म एक ब्राहमण परिवार में हुआ पर किन्ही कारणों से उनके माता ने उन्ही एक टोकरी में रख कर तालाब में छोड़ दिया। जिसे एक मुस्लिम परिवार ने उठा लिया और उनका लालन पोषण उन्होंने ही किया। वो परिवार गरीब था फिर भी उन्होंने कबीर का लालन पोषण और शिक्षा में कोई कमी नहीं रहने दी। हालाँकि बाद में कुछ जानकारों से इसे नकार दिया बिना किसी पक्के साक्ष्यो के आभाव के कारण।

 

 

 

 

 

कुछ ईतिहासकार ये भी मानते है की कबीर का जन्म एक मुस्लिम परिवार में ही हुआ था। ये माना जाता है कबीर का परिवार आज भी काशी में कबीर चौरा में रहता है।

कबीर दस ने अपने दोहे और Poem हिंदी, अवधी, भोजपुरी और ब्रज भाषा में लिखी। ये माना जाता है उनके गुरु रामानंद शुरुआत में कबीर को शिक्षा देने को राजी नहीं थे। पर एक दिन रामानंद जी एक तालाब के पास स्नान कर रहे थे तभी कबीर उनके पैरो में बैठ गए और उनसे विनती की। इसके बाद उन्हें अपने गलती का एहसास हुआ और उन्होंने कबीर को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया और उन्हें शिक्षा दी।

 

 

 

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित : KABIR KE DOHE IN HINDI

कबीर के दोहे हमें सच्चा और अच्छा इंसान बनने की प्रेणना देते है। समाज में फैली बुराइयों पर भी कबीर के दोहे कटाक्ष करते है। ऐसे लोग जो ज़िन्दगी में हारे हुए है, निराश है उन्हें एक मोटिवेशन देने का काम भी ये दोहे करते है।

तन को जोगी सब करे…. मन को विरला कोय
सहजे सब विधि पाइए…. जो मन जोगी होए

दोहे का हिंदी अर्थ : कबीर के इस दोहे का अर्थ है हम सब अपने तन यानि शरीर की तो रोज सफाई करते रहते है पर मन को साफ़ करने वाले बहुत कम लोग है। असल में सच्चा और अच्छा इंसान वाही है जिनका मन साफ़ होता है।

 

 

 

 

 

झूठे सुख को सुख कहे….. मानत है मन मोद
खलक चबैना काल का….. कुछ मुंह में कुछ गोद

हिंदी अर्थ : इस दोहे में कबीर जी का कहना है हे मनुष्य तू झूठे सुख को देखकर ही खुश हुए जाता है, जबकि ये जान ले ये पूरी दुनिया मौत के लिए खाने के जैसा है जो आधा तो खा लिया है और आधा उसकी गोद में रखा है।

 

कबीरा सोई पीर है…. जो जाने पर पीर
जो पर पीर न जानही…. सो का पीर में पीर

इस कबीर के दोहे का अर्थ : कबीर का कहना है असल में इंसान वही है को औरो के दुःख को समझे और उनकी मदद करने की कौशिश करे। जो इंसान किसी दूसरे की पीड़ा को नहीं समझता यानी उसे किसी के दुःख से कोई फर्क नहीं पड़ता वो सच्चा इंसान नहीं हो सकता।

 

 

 

 

 

ऐसी बनी बोलिये…. मन का आपा खोय
औरन को शीतल करै…. आपौ शीतल होय

Kabir ke Doha Meaning in Hindi : इस दोहे का मतलब है हमें सब तरह के घमंड को त्याग कर मीठी वाणी या अच्छी बाते बोलनी चाहिए जिससे सुनने वालो के मन को तो ख़ुशी मिले ही उसके साथ में अपने मन को भी ख़ुशी मिलती है।

 

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे… तेरा किया न होई
पानी में घिव निकसे… तो रूखा खाए न कोई

हिंदी में अर्थ : कबीर के दोहे का अर्थ है मनुष्य को उन इच्छाओ को पूरी करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए जिन्हें पूरा करना उनके बस में ना हो। अगर पानी से घी निकल सकता तो कोई भी रोटी सूखी नहीं खाता।

 

 

 

 

 

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ… पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का…. जो पढ़े सो पंडित होय

हिंदी अर्थार्थ : ऐसे बहुत लोग आये है जिन्होंने पूरी ज़िन्दगी खूब पढ़ा लिखा पर फिर भी अंत में विद्वान् नहीं बन सके। सही मायनो में जिसने प्यार के ढाई अक्षर यानी प्रेम को सही से समझ लिया असल पंडित यानी विद्वान् वही होता है।

 

संत ना छाडै संतई… जो कोटिक मिले असंत
चन्दन भुवंगा बैठिया… तऊ सीतलता न तजंत

अर्थ : इस Kabir ke dohe का अर्थ है अच्छा और सज्जन इंसान चाहे कितने भी बुरे लोगो के बीच मेर रहे वो कभी अपने अच्छाई और सत्य कर्म नहीं छोड़ सकता है। ठीक वैसे ही जैसे चंदन का पेड़ सांपो से लिप्त होने के बाद भी कभी विषैला नहीं होता।

 

 

 

 

 

जिन खोजा तिन पाइया… गहरे पानी पैठ
मैं बपुरा बूडन डरा… रहा किनारे बैठ

हिंदी में मतलब : कबीर इस दोहे में कहता है जो हमेशा प्रयत्न करते है कभी हार नहीं मानते वो अपने लक्ष्य को पा ही लेते है। जैसे कोई गोताखोर जब पानी में छलांग लगाता है तो वहा से कुछ न कुछ साथ लता ही है और जो लोग किनारे पर डर में बैठे रहते है उन्हें कुछ नहीं मिल पता।

 

बुरा जो देखन मैं चला…… बुरा न मिलिया कोय
जो मन देखा आपना…… मुझ से बुरा न कोय

हिंदी अर्थ : कबीर दास इस दोहे में कहते हैं की मैंने लोगो में बुराइया ढूंढने की कोशिश की पर कोई बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपना आपने को देखा तो पाया की मुझ में काफी बुराइया हैं यानी मेरे से बुरा कोई नहीं। यह उन्होंने बताया हैं की दुसरो की बुराइया देखने की बजाय खुद को देखना चाहिए की मुझमे कितने अवगुण हैं।

 

 

 

 

 

तिनका कबहुँ ना निंदये….. जो पावन तले होय
कबहुँ उड़ आँखो पड़े……. पीर घानेरी होय

हिंदी मीनिंग : यह कहने का तत्पर्य हैं kabir kon the की छोटे से शोता तीन kabir kon the जो पेरो के निचे आ जाता हैं kabir kon the उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि kabir kon the कभी कभी वही तिनका आखो में चला जाए तो बहुत तेज़ दर्द करता हैं kabir kon the और एक जख्म बना देता हैं।

इस दोहे से हमको सीखना चाहिए किसी भी आदमी को छोटा नहीं समझना चाहिए। क्योंकि कुछ पता नहीं होता वही कमज़ोर और गरीब आदमी कब बड़ा हो जाए। इसलिए हर छोटे बड़े को सम्मान करना चाहिए और किसी को कम नहीं आंकना चाहिए।

 

धीरे धीरे रे मना….. धीरे सब कुछ होय

माली सींचे सौ घड़ा…… ॠतु आए फल होय

हिंदी मे अर्थ : इस दोहे मे कबीर दस खुद से बात करते Kabir ke Dohe in Hindi with meaning हुए अपने मन को समझाता हैं Kabir ke Dohe in Hindi with meaning की हर काम के पूरा होने का एक समय होता हैं। Kabir ke Dohe in Hindi with meaning इसलिए धीरज रखना जरुरी हैं। जैसे माली जितना चाहे पानी से पेड़ की सिचाई क्यों ना कर ली पर फल तो पेड़ पर मौसम के अनुसार ही आएंगे।

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